LOVE AND CONTENTMENT, Love And Separation

¶ उसी मौसम से मैं कविताशुदा ¶

फीकी रसीदी चिठ्ठीयाँ कई मौसमों की उम्र छुपाए रखी रहती हैं। छंटी हुई चिट्ठियों का स्पर्श, महकते हुए अक्षरों को पढना कभी पूरा ही नहीं होता है! मैं कोई चिठ्ठी कभी एक बार में पूरी नहीं पढ़ पाया।आधी पढकर ही आंखे मुंद जाती हैं हमेशा। भरी बाहों से, सीने से होते हूए कान से सट… Continue reading ¶ उसी मौसम से मैं कविताशुदा ¶

Dead Letters, LOVE AND CONTENTMENT

¶ DEAD LETTERS ¶

"And I kept thinking about how sky is a singular noun, as if it's one thing. But the sky isn't one thing. The sky is everything. And last night, it was enough." ----- John Green कभी कभी बस करवट भर ले जाने से दो लोगों के बीच कितने फासलें, कितनी दूरीयां बन जाती है। इतना… Continue reading ¶ DEAD LETTERS ¶

Dead Letters, LOVE AND CONTENTMENT

¶ भीगा भितर तक ¶

रात गहरा रही है, फैल चुकी है चारो ओर और आधी रात अब नीम सन्नाटे से लथपथ है। भर दिन बहुत बारिश हुई थी। सब भीग गया था। हाँ सब भीग जाता है भीतर तक जब भी बारिश होती है। मैं भी भीगा था... बस पता नहीं कहाँ तक। गीला तो नहीं हुआ पर पानी… Continue reading ¶ भीगा भितर तक ¶

LOVE AND CONTENTMENT

¶ मुझ बुद्धु का वावरी ¶

"उफ्फ! धीरज लिकुन धीरज" मैंने छाती पे हाथ थपथपाके अपने आप से कहा और फेफड़े भर सांस छोड़ी। चैन जैसे यहां- वहां फुदक रहा था मेरे चारों ओर और मैं रह- रह कर ऊँगली कस रहा था। जब से घरवाले ने रोके के बारे में बात की है तब से ही है बेचैनी। आज गेसु… Continue reading ¶ मुझ बुद्धु का वावरी ¶

LOVE AND CONTENTMENT

¶ नारंगी सूरज गोधूली में ¶

मौन सी शाम कई बार गुदगुदी कर देती है हृदय में। होठों के किनारे खुद ब खुद फैल जाते हैं। दिन उतर रहा होता है और खुमार चढ़ रहा होता है। दूर खेतों के बीच वो नारियल की झूमती शाख में मुझे नारंगी सूरज छिपता दिखाई दे रहा था। शायद वो भी मेरी तरह प्रेम… Continue reading ¶ नारंगी सूरज गोधूली में ¶